श्री भगवत भगवान की है आरती! (Shri Bhagwat Bhagwan Ki Aarti)
श्री भगवत भगवान की है आरती,
पापियों को पाप से है तारती।
ये अमर ग्रन्थ ये मुक्ति पन्थ,
ये पंचम वेद निराला,
नव ज्योति जलाने वाला।
हरि नाम यही हरि धाम यही,
यही जग मंगल की आरती
पापियों को पाप से है तारती॥
॥ श्री भगवत भगवान की है आरती...॥
ये शान्ति गीत पावन पुनीत,
पापों को मिटाने वाला,
हरि दरश दिखाने वाला।
यह सुख करनी, यह दुःख हरिनी,
श्री मधुसूदन की आरती,
पापियों को पाप से है तारती॥
॥ श्री भगवत भगवान की है आरती...॥
ये मधुर बोल, जग फन्द खोल,
सन्मार्ग दिखाने वाला,
बिगड़ी को बनानेवाला।
श्री राम यही, घनश्याम यही,
यही प्रभु की महिमा की आरती
पापियों को पाप से है तारती॥
॥ श्री भगवत भगवान की है आरती...॥
श्री भगवत भगवान की है आरती,
पापियों को पाप से है तारती।
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आरती: भगवान श्री शीतलनाथ जी (Arti Bhagwan Shri Sheetalnath Ji)
ॐ जय शीतलनाथ स्वामी,
स्वामी जय शीतलनाथ स्वामी।
घृत दीपक से करू आरती,
घृत दीपक से करू आरती।
तुम अंतरयामी,
ॐ जयशीतलनाथ स्वामी॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी...॥
भदिदलपुर में जनम लिया प्रभु,
दृढरथ पितु नामी,
दृढरथ पितु नामी।
मात सुनन्दा के नन्दा तुम,
शिवपथ के स्वामी॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी...॥
जन्म समय इन्द्रो ने,
उत्सव खूब किया,
स्वामी उत्सव खूबकिया ।
मेरु सुदर्शन ऊपर,
अभिषेक खूब किया॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी...॥
पंच कल्याणक अधिपति,
होते तीर्थंकर,
स्वामी होते तीर्थंकर ।
तुम दसवे तीर्थंकर स्वामी,
हो प्रभु क्षेमंकर॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी...॥
अपने पूजक निन्दक केप्रति,
तुम हो वैरागी,
स्वामी तुम हो वैरागी ।
केवल चित्त पवित्र करन नित,
तुमपूजे रागी॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी...॥
पाप प्रणाशक सुखकारक,
तेरे वचन प्रभो,
स्वामी तेरे वचन प्रभो।
आत्मा को शीतलता शाश्वत,
दे तब कथन विभो॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी...॥
जिनवर प्रतिमा जिनवर जैसी,
हम यह मान रहे,
स्वामी हम यह मान रहे।
प्रभो चंदानामती तब आरती,
भाव दुःख हान करें॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी...॥
ॐ जय शीतलनाथ स्वामी,
स्वामी जय शीतलनाथ स्वामी।
घृत दीपक से करू आरती,
घृत दीपक से करू आरती।
तुम अंतरयामी,
ॐ जयशीतलनाथ स्वामी॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी...॥
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आरती: माँ महाकाली (Aarti: Maa Maha Kali)
जय काली माता, माँ जय महा काली माँ।
रतबीजा वध कारिणी माता।
सुरनर मुनि ध्याता, माँ जय महा काली माँ॥
दक्ष यज्ञ विदवंस करनी माँ शुभ निशूंभ हरलि।
मधु और कैितभा नासिनी माता।
महेशासुर मारदिनी, ओ माता जय महा काली माँ॥
हे हीमा गिरिकी नंदिनी प्रकृति रचा इत्ठि।
काल विनासिनी काली माता।
सुरंजना सूख दात्री हे माता॥
अननधम वस्तराँ दायनी माता आदि शक्ति अंबे।
कनकाना कना निवासिनी माता।
भगवती जगदंबे, ओ माता जय महा काली माँ॥
दक्षिणा काली आध्या काली, काली नामा रूपा।
तीनो लोक विचारिती माता धर्मा मोक्ष रूपा॥
॥ जय महा काली माँ ॥
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श्री बद्रीनाथजी की आरती (Shri Badrinath Aarti)
पवन मंद सुगंध शीतल,
हेम मंदिर शोभितम् ।
निकट गंगा बहत निर्मल,
श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥
शेष सुमिरन करत निशदिन,
धरत ध्यान महेश्वरम् ।
वेद ब्रह्मा करत स्तुति,
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ॥
॥ पवन मंद सुगंध शीतल...॥
शक्ति गौरी गणेश शारद,
नारद मुनि उच्चारणम् ।
जोग ध्यान अपार लीला,
श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥
॥ पवन मंद सुगंध शीतल...॥
इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर,
धूप दीप प्रकाशितम् ।
सिद्ध मुनिजन करत जय जय,
बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥
॥ पवन मंद सुगंध शीतल...॥
यक्ष किन्नर करत कौतुक,
ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम् ।
श्री लक्ष्मी कमला चंवरडोल,
श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥
॥ पवन मंद सुगंध शीतल...॥
कैलाश में एक देव निरंजन,
शैल शिखर महेश्वरम् ।
राजयुधिष्ठिर करत स्तुति,
श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥
॥ पवन मंद सुगंध शीतल...॥
श्री बद्रजी के पंच रत्न,
पढ्त पाप विनाशनम् ।
कोटि तीर्थ भवेत पुण्य,
प्राप्यते फलदायकम् ॥
॥ पवन मंद सुगंध शीतल...॥
पवन मंद सुगंध शीतल,
हेम मंदिर शोभितम् ।
निकट गंगा बहत निर्मल,
श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥
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भगवद् गीता आरती (Aarti Shri Bhagwat Geeta)
जय भगवद् गीते,
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥
कर्म-सुमर्म-प्रकाशिनि,
कामासक्तिहरा ।
तत्त्वज्ञान-विकाशिनि,
विद्या ब्रह्म परा ॥
जय भगवद् गीते...॥
निश्चल-भक्ति-विधायिनि,
निर्मल मलहारी ।
शरण-सहस्य-प्रदायिनि,
सब विधि सुखकारी ॥
जय भगवद् गीते...॥
राग-द्वेष-विदारिणि,
कारिणि मोद सदा ।
भव-भय-हारिणि,
तारिणि परमानन्दप्रदा ॥
जय भगवद् गीते...॥
आसुर-भाव-विनाशिनि,
नाशिनि तम रजनी ।
दैवी सद् गुणदायिनि,
हरि-रसिका सजनी ॥
जय भगवद् गीते...॥
समता, त्याग सिखावनि,
हरि-मुख की बानी ।
सकल शास्त्र की स्वामिनी,
श्रुतियों की रानी ॥
जय भगवद् गीते...॥
दया-सुधा बरसावनि,
मातु! कृपा कीजै ।
हरिपद-प्रेम दान कर,
अपनो कर लीजै ॥
जय भगवद् गीते...॥
जय भगवद् गीते,
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥
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श्री चित्रगुप्त जी की आरती - श्री विरंचि कुलभूषण (Shri Chitragupt Aarti - Shri Viranchi Kulbhusan)
श्री विरंचि कुलभूषण,
यमपुर के धामी ।
पुण्य पाप के लेखक,
चित्रगुप्त स्वामी ॥
सीस मुकुट, कानों में कुण्डल,
अति सोहे ।
श्यामवर्ण शशि सा मुख,
सबके मन मोहे ॥
भाल तिलक से भूषित,
लोचन सुविशाला ।
शंख सरीखी गरदन,
गले में मणिमाला ॥
अर्ध शरीर जनेऊ,
लंबी भुजा छाजै ।
कमल दवात हाथ में,
पादुक परा भ्राजे ॥
नृप सौदास अनर्थी,
था अति बलवाला ।
आपकी कृपा द्वारा,
सुरपुर पग धारा ॥
भक्ति भाव से यह,
आरती जो कोई गावे ।
मनवांछित फल पाकर,
सद्गति पावे ॥
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धर्मराज आरती - धर्मराज कर सिद्ध काज (Dharmraj Ki Aarti - Dharmraj Kar Siddh Kaaj)
धर्मराज कर सिद्ध काज,
प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी ।
पड़ी नाव मझदार भंवर में,
पार करो, न करो देरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
धर्मलोक के तुम स्वामी,
श्री यमराज कहलाते हो ।
जों जों प्राणी कर्म करत हैं,
तुम सब लिखते जाते हो ॥
अंत समय में सब ही को,
तुम दूत भेज बुलाते हो ।
पाप पुण्य का सारा लेखा,
उनको बांच सुनते हो ॥
भुगताते हो प्राणिन को तुम,
लख चौरासी की फेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
चित्रगुप्त हैं लेखक तुम्हारे,
फुर्ती से लिखने वाले ।
अलग अगल से सब जीवों का,
लेखा जोखा लेने वाले ॥
पापी जन को पकड़ बुलाते,
नरको में ढाने वाले ।
बुरे काम करने वालो को,
खूब सजा देने वाले ॥
कोई नही बच पाता न,
याय निति ऐसी तेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
दूत भयंकर तेरे स्वामी,
बड़े बड़े दर जाते हैं ।
पापी जन तो जिन्हें देखते ही,
भय से थर्राते हैं ॥
बांध गले में रस्सी वे,
पापी जन को ले जाते हैं ।
चाबुक मार लाते,
जरा रहम नहीं मन में लाते हैं ॥
नरक कुंड भुगताते उनको,
नहीं मिलती जिसमें सेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
धर्मी जन को धर्मराज,
तुम खुद ही लेने आते हो ।
सादर ले जाकर उनको तुम,
स्वर्ग धाम पहुचाते हो ।
जों जन पाप कपट से डरकर,
तेरी भक्ति करते हैं ।
नर्क यातना कभी ना करते,
भवसागर तरते हैं ॥
कपिल मोहन पर कृपा करिये,
जपता हूँ तेरी माला ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
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धर्मराज आरती - ॐ जय धर्म धुरन्धर (Dharmraj Ki Aarti - Om Jai Dharm Dhurandar)
ॐ जय जय धर्म धुरन्धर,
जय लोकत्राता ।
धर्मराज प्रभु तुम ही,
हो हरिहर धाता ॥
जय देव दण्ड पाणिधर यम तुम,
पापी जन कारण ।
सुकृति हेतु हो पर तुम,
वैतरणी ताराण ॥2॥
न्याय विभाग अध्यक्ष हो,
नीयत स्वामी ।
पाप पुण्य के ज्ञाता,
तुम अन्तर्यामी ॥3॥
दिव्य दृष्टि से सबके,
पाप पुण्य लखते ।
चित्रगुप्त द्वारा तुम,
लेखा सब रखते ॥4॥
छात्र पात्र वस्त्रान्न क्षिति,
शय्याबानी ।
तब कृपया, पाते हैं,
सम्पत्ति मनमानी ॥5॥
द्विज, कन्या, तुलसी,
का करवाते परिणय ।
वंशवृद्धि तुम उनकी,
करते नि:संशय ॥6॥
दानोद्यापन-याजन,
तुष्ट दयासिन्धु ।
मृत्यु अनन्तर तुम ही,
हो केवल बन्धु ॥7॥
धर्मराज प्रभु,
अब तुम दया ह्रदय धारो ।
जगत सिन्धु से स्वामिन,
सेवक को तारो ॥8॥
धर्मराज जी की आरती,
जो कोई नर गावे ।
धरणी पर सुख पाके,
मनवांछित फल पावे ॥9॥
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श्री ललिता माता की आरती (Shri Lalita Mata Ki Aarti)
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी ।
राजेश्वरी जय नमो नमः ॥
करुणामयी सकल अघ हारिणी ।
अमृत वर्षिणी नमो नमः ॥
जय शरणं वरणं नमो नमः ।
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी ॥
अशुभ विनाशिनी, सब सुख दायिनी ।
खल-दल नाशिनी नमो नमः ॥
भण्डासुर वधकारिणी जय माँ ।
करुणा कलिते नमो नम: ॥
जय शरणं वरणं नमो नमः ।
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी ॥
भव भय हारिणी, कष्ट निवारिणी ।
शरण गति दो नमो नमः ॥
शिव भामिनी साधक मन हारिणी ।
आदि शक्ति जय नमो नमः ॥
जय शरणं वरणं नमो नमः ।
जय त्रिपुर सुन्दरी नमो नमः ॥
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी ।
राजेश्वरी जय नमो नमः ॥
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श्री शाकुम्भरी देवी जी की आरती (Shakumbhari Devi Ki Aarti)
हरि ओम श्री शाकुम्भरी अंबा जी की आरती क़ीजो
एसी अद्वभुत रूप हृदय धर लीजो
शताक्षी दयालू की आरती किजो
तुम परिपूर्ण आदि भवानी माँ,
सब घट तुम आप भखनी माँ
शकुंभारी अंबा जी की आरती किजो
तुम्ही हो शाकुम्भर,
तुम ही हो सताक्षी माँ
शिवमूर्ति माया प्रकाशी माँ
शाकुम्भरी अंबा जी की आरती किजो
नित जो नर नारी अंबे आरती गावे माँ
इच्छा पूरण किजो,
शाकुम्भर दर्शन पावे माँ
शाकुम्भरी अंबा जी की आरती किजो
जो नर आरती पढ़े पढ़ावे माँ,
जो नर आरती सुनावे माँ
बस बैकुण्ठ शाकुम्भर दर्शन पावे
शाकुम्भरी अंबा जी की आरती किजो
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श्री सूर्य देव - ऊँ जय कश्यप नन्दन। (Shri Surya Dev Jai Kashyapa Nandana)
ऊँ जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥
॥ ऊँ जय कश्यप...॥
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥
॥ ऊँ जय कश्यप...॥
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
॥ ऊँ जय कश्यप...॥
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥
॥ ऊँ जय कश्यप...॥
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥
॥ ऊँ जय कश्यप...॥
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
॥ ऊँ जय कश्यप...॥
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥
ऊँ जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥
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श्री झूलेलाल आरती- ॐ जय दूलह देवा (Shri Jhulelal Om Jai Doolah Deva)
चेटी चंड जैसे त्यौहारों तथा सिंधी समाज के अन्य कार्यक्रमों में सबसे ज्यादा गाई जाने वाली आरती। भगवान झूलेलाल के प्रत्येक मंदिर में यह आरती सुवह-शाम अवश्य गायी जाती है। भगवान झूलेलाल को लाल साई, उदेरो लाल, वरुण देव, दूलह लाल, दरिया लाल और जिंदा पीर भी कहा जाता है।
ॐ जय दूलह देवा,
साईं जय दूलह देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी,
सिदुक रखी सेवा ॥
तुहिंजे दर दे केई,
सजण अचनि सवाली ।
दान वठन सभु दिलि,
सां कोन दिठुभ खाली ॥
॥ ॐ जय दूलह देवा...॥
अंधड़नि खे दिनव,
अखडियूँ - दुखियनि खे दारुं ।
पाए मन जूं मुरादूं,
सेवक कनि थारू ॥
॥ ॐ जय दूलह देवा...॥
फल फूलमेवा सब्जिऊ,
पोखनि मंझि पचिन ।
तुहिजे महिर मयासा अन्न,
बि आपर अपार थियनी ॥
॥ ॐ जय दूलह देवा...॥
ज्योति जगे थी जगु में,
लाल तुहिंजी लाली ।
अमरलाल अचु मूं वटी,
हे विश्व संदा वाली ॥
॥ ॐ जय दूलह देवा...॥
जगु जा जीव सभेई,
पाणिअ बिन प्यास ।
जेठानंद आनंद कर,
पूरन करियो आशा ॥
ॐ जय दूलह देवा,
साईं जय दूलह देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी,
सिदुक रखी सेवा ॥
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ॐ जय जय शनि महाराज: श्री शनिदेव आरती (Aarti Om Jai Jai Shri Shani Maharaj)
ॐ जय जय शनि महाराज,
स्वामी जय जय शनि महाराज ।
कृपा करो हम दीन रंक पर,
दुःख हरियो प्रभु आज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
सूरज के तुम बालक होकर,
जग में बड़े बलवान ।
सब देवताओं में तुम्हारा,
प्रथम मान है आज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
विक्रमराज को हुआ घमण्ड फिर,
अपने श्रेष्ठन का ।
चकनाचूर किया बुद्धि को,
हिला दिया सरताज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
प्रभु राम और पांडवजी को,
भेज दिया बनवास ।
कृपा होय जब तुम्हारी स्वामी,
बचाई उनकी लॉज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
शुर-संत राजा हरीशचंद्र का,
बेच दिया परिवार ।
पात्र हुए जब सत परीक्षा में,
देकर धन और राज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
गुरुनाथ को शिक्षा फाँसी की,
मन के गरबन को ।
होश में लाया सवा कलाक में,
फेरत निगाह राज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
माखन चोर वो कृष्ण कन्हाइ,
गैयन के रखवार ।
कलंक माथे का धोया उनका,
खड़े रूप विराज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
देखी लीला प्रभु आया चक्कर,
तन को अब न सतावे ।
माया बंधन से कर दो हमें,
भव सागर ज्ञानी राज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
मैं हूँ दीन अनाथ अज्ञानी,
भूल भई हमसे ।
क्षमा शांति दो नारायण को,
प्रणाम लो महाराज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
ॐ जय जय शनि महाराज,
स्वामी जय-जय शनि महाराज ।
कृपा करो हम दीन रंक पर,
दुःख हरियो प्रभु आज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
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श्री जानकीनाथ जी की आरती (Shri Jankinatha Ji Ki Aarti)
ॐ जय जानकीनाथा,
जय श्री रघुनाथा ।
दोउ कर जोरें बिनवौं,
प्रभु! सुनिये बाता ॥ ॐ जय..॥
तुम रघुनाथ हमारे,
प्राण पिता माता ।
तुम ही सज्जन-संगी,
भक्ति मुक्ति दाता ॥ ॐ जय..॥
लख चौरासी काटो,
मेटो यम त्रासा ।
निशदिन प्रभु मोहि रखिये,
अपने ही पासा ॥ ॐ जय..॥
राम भरत लछिमन,
सँग शत्रुहन भैया ।
जगमग ज्योति विराजै,
शोभा अति लहिया ॥ ॐ जय..॥
हनुमत नाद बजावत,
नेवर झमकाता ।
स्वर्णथाल कर आरती,
करत कौशल्या माता ॥ ॐ जय..॥
सुभग मुकुट सिर, धनु सर,
कर शोभा भारी ।
मनीराम दर्शन करि,
पल-पल बलिहारी ॥ ॐ जय..॥
जय जानकिनाथा,
हो प्रभु जय श्री रघुनाथा ।
हो प्रभु जय सीता माता,
हो प्रभु जय लक्ष्मण भ्राता ॥ ॐ जय..॥
हो प्रभु जय चारौं भ्राता,
हो प्रभु जय हनुमत दासा ।
दोउ कर जोड़े विनवौं,
प्रभु मेरी सुनो बाता ॥ ॐ जय..॥
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आरती: श्री रामचन्द्र जी (Shri Ramchandra Ji 2)
श्री राम नवमी, विजय दशमी, सुंदरकांड, रामचरितमानस कथा और अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से की जाने वाली आरती।
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥
पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥
दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
रत्न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥
चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥
पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥
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आरती: श्री रामायण जी (Shri Ramayan Ji)
आरती श्री रामायण जी की ।
कीरति कलित ललित सिय पी की ॥
गावत ब्रहमादिक मुनि नारद ।
बाल्मीकि बिग्यान बिसारद ॥
शुक सनकादिक शेष अरु शारद ।
बरनि पवनसुत कीरति नीकी ॥
॥ आरती श्री रामायण जी की..॥
गावत बेद पुरान अष्टदस ।
छओं शास्त्र सब ग्रंथन को रस ॥
मुनि जन धन संतान को सरबस ।
सार अंश सम्मत सब ही की ॥
॥ आरती श्री रामायण जी की..॥
गावत संतत शंभु भवानी ।
अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी ॥
ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी ।
कागभुशुंडि गरुड़ के ही की ॥
॥ आरती श्री रामायण जी की..॥
कलिमल हरनि बिषय रस फीकी ।
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की ॥
दलनि रोग भव मूरि अमी की ।
तात मातु सब बिधि तुलसी की ॥
आरती श्री रामायण जी की ।
कीरति कलित ललित सिय पी की ॥
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गुरुदेव आरती - श्री नंगली निवासी सतगुरु (Guru Aarti - Shri Nangli Niwasi Satguru)
आरती श्री गुरुदेव जी की गाऊँ ।
बार-बार चरणन सिर नाऊँ ॥
त्रिभुवन महिमा गुरु जी की भारी ।
ब्रह्मा विष्णु जपे त्रिपुरारी ॥
राम कृष्ण भी बने पुजारी ।
आशीर्वाद में गुरु जी को पाऊं ॥
भव निधि तारण हार खिवैया ।
भक्तों के प्रभु पार लगैया ॥
भंवर बीच घूमे मेरी नैया ।
बार बार प्रभु शीष नवाऊँ ॥
ज्ञान दृष्टि प्रभु मो को दीजै ।
माया जनित दुख हर लीजै ॥
ज्ञान भानु प्रकाश करीजै ।
आवागमन को दुख नहीं पाऊं ॥
राम नाम प्रभु मोहि लखायो ।
रूप चतुर्भुज हिय दर्शायो ॥
नाद बिंदु पुनि ज्योति लखायो ।
अखंड ध्यान में गुरु जी को पाऊँ ॥
जय जयकार गुरु उपनायों ।
भव मोचन गुरु नाम कहायो ॥
श्री माताजी ने अमृत पायो ।
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माता गायत्री आरती (Mata Gayatri Aarti)
जयति जय गायत्री माता,
जयति जय गायत्री माता ।
सत् मारग पर हमें चलाओ,
जो है सुखदाता ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक कर्त्री ।
दु:ख शोक, भय, क्लेश कलश दारिद्र दैन्य हत्री ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत धातृ अम्बे ।
भव भयहारी, जन-हितकारी, सुखदा जगदम्बे ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि ।
अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
कामधेनु सतचित आनन्द जय गंगा गीता ।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
ऋग, यजु साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे ।
कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
स्वाहा, स्वधा, शची ब्रह्माणी राधा रुद्राणी ।
जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
जननी हम हैं दीन-हीन, दु:ख-दरिद्र के घेरे ।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै ।
विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये ।
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये ॥
॥ जयति जय गायत्री माता..॥
जयति जय गायत्री माता,
जयति जय गायत्री माता ।
सत् मारग पर हमें चलाओ,
जो है सुखदाता ॥
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आरती: श्री शनिदेव - जय जय श्री शनिदेव (Shri Shani Dev Ji)
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
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आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन - भोग आरती (Aao Bhog Lagao Mere Mohan: Bhog Aarti)
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
दुर्योधन को मेवा त्यागो,
साग विदुर घर खायो प्यारे मोहन,
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
भिलनी के बैर सुदामा के तंडुल
रूचि रूचि भोग लगाओ प्यारे मोहन…
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
वृदावन की कुञ्ज गली मे,
आओं रास रचाओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
राधा और मीरा भी बोले,
मन मंदिर में आओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
गिरी, छुआरा, किशमिश मेवा,
माखन मिश्री खाओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
सत युग त्रेता दवापर कलयुग,
हर युग दरस दिखाओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
जो कोई तुम्हारा भोग लगावे
सुख संपति घर आवे प्यारे मोहन,
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
ऐसा भोग लगाओ प्यारे मोहन
सब अमृत हो जाये प्यारे मोहन,
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
जो कोई ऐसा भोग को खावे
सो त्यारा हो जाये प्यारे मोहन,
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
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